Moral stories in hindi

                       Moral stories in hindi

 आज मैं आपको इस आर्टिकल मैं ऐसी कहानी बताने जा रहा हु. जिसको पढ़कर आपको काम करने मैं मन लगने लगेगा. यह कहानी कर्म और सुख की है. जिसको पड़ने के बाद आपको काफ़ी अच्छी शिक्षा भी मिलेगी.


एक समय  कर्म और सुख मैं काफ़ी गहरी दोस्ती थी. बे दोनों काफ़ी अच्छी बाते किया करते थे. कभी कभी बे आपस मैं लड़ाई भी लड़ लिया करते थे. लेकिन बे दोनों काफ़ी समझदार थे इसलिए ज़ब उनमे से कोई एक नाराज हुआ करता था. तब दूसरा सांत रहा करता था जिस कारण उनकी दोस्ती काफ़ी अच्छी चल रही थी.
वे दोनों एक बार ऐसे ही कहीं घूमने जा रहे थे. रास्ते मैं उनको एक भिकारी बैठा हुआ मिला जो काफ़ी हट्टा कट्टा भी था. सायद लोग उसको इसी बजह से कम भिक दिया करते थे. भिकारी कम भिक मिलने की बजह से काफी परेशान रहा करता था. और कभी कभी उसे कई दिन तक भूखा भी रहना पड़ता था.

सुख को भिकारी की यह हालत देखकर दया आ गयी. उसने भिकारी को सुख देने के लिए उसके पास एक व्यक्ति के रूप मैं गया और उसे ढेर सारा  धन दे दिया.
भिकारी इस धन को देखकर काफ़ी ख़ुश हुआ और मन ही मन उस व्यक्ति को धन्यवाद किया. भिकारी ने इस रुपयों से अपने घर का जरुरी सामान ख़रीदा. अब बो काफ़ी हसीं खुशी रहने भी लगा.

लेकिन कुछ समय के बाद उसका धन खतम होने लगा और अब वो बापस भिक मागने के लिए अपनी उसी जगह पर बैठ गया. इस उम्मीद मैं की कोई और इंसान आकर उसको बापस से कुछ रूपए देगा और वो फिर से कुछ दिन अच्छे से काट सकेगा. भिकारी काफ़ी समय तक उसी जगह पर बैठकर भिक मांगता रहा. काफ़ी समय के बाद कर्म और सुख बापस उसी जगह से गुजर रहे थे. उनकी नजर फिर उसी भिकारी पर पड़ी. इस बार सुख ने भिकारी की सहायता नहीं की क्यूंकि ऐसे तो उसकी ऐसे तो आदत बन जायगी और वो जीवन भर भिक मांगकर खायगा.

इस बार दया करने की वारी कर्म की थी. कर्म ने एक साधारण इंसान का रूप रखा. और उस आदमी को बाजार से एक तराजू और वाट दिला दिए. इसके साथ साथ उसको कुछ रुपय भी दे दिए ताकि वो कुछ सामान खरीद सके. कर्म ने उसे सामान दिलाकर उसको राय दी की जहाँ तुम बैठकर भिक मांगते हो वहा तुम कुछ सामान बेच सकते हो इससे तुम्हे कुछ कमाई भी हो जायगी. भिकारी ने ऐसा ही किया.
उसके बाद कर्म और सुख अपने रास्ते को चल दिए.
भिकारी ने उसी जगह पर बैठकर अपना सामान बेचा.
भिकारी अब रोजाना ऐसे ही सामान बेचा करता था. अब सामान बेचकर जो रुपय की कमाई होती थी उससे अब वो काफी ख़ुश था. अब बो पहले से ज्यादा सामान बेचने लगा.

काफ़ी समय के बाद कर्म और सुख बहार घूमने निकले कर्म के मन मैं उस भिकारी को देखने का एक बार ख्याल आया. कर्म और सुख को भिकारी से कोई खास उम्मीद ना थी. उसको पता था की भिकारी ने कर्म के द्वारा दिलाये हुए सामान को बेचकर बापस भिक मांगना शुरू कर दिया होगा. लेकिन कर्म को पता  था की ऐसा नहीं है. कर्म सुख को अपने साथ उसी जगह पर ले गया जहाँ बो भिकारी बैठा करता था. लेकिन भिकारी अब उस जगह पर नहीं था. कर्म ने वहा के किसी इंसान से पूछा की यहां जो भिकारी बैठा करता था वो अबकहां है. उस ब्यक्ति ने एक घर के इशारा किया जो काफ़ी बड़ा और शानदार था. अब भिकारी उस घर मैं रहा करता था. क्यूंकि अब वो कर्म कम करता था.

सीख-मित्रो हमें अपनी जिंदगी मैं कभी भी बिना कुछ किये किसी चीज की उम्मीद  नहीं करनी चाहिए.




एक बार संकल्प और बल मैं बहस हो रही थी की सफलता पाने के लिए क्या जरुरी है. दोनों मैं काफ़ी बहस हुई. लेकिन दोनों अपनी बात पर अड़े हुए थे. दोनो अपने आप को श्रेष्ठ बताबे पर तुले हुए. लेकिन अंत मैं दोनों ने विवेक से फैसला करने के लिए कहा.

विवेक ने दोनों माँ फैसला करने के लिए कहा. विवेक ने अपने हाथ मैं एक कील ली और सबसे पहले वो एक बालक के पास गया.जहाँ और भी भी बालक खेल रहे थे. विवेक ने बालक से कहा अगर तुम इस हतोड़े से इस कील को सिद्ध कर दोगे तब मैं तुम्हे भर पेट मिठाई दूंगा.मिठाई का नाम सुनते ही बालक के चेहरे पर चमक आ गयी. उसने अपनी पूरी मेहनत से कील को सीधा करने की कोसिस की. लेकिन हतोड़ा काफ़ी भारी था.हतोड़ाे से उस कील को सीधा करना तो दूर की बात थी. वो उस हतोड़ा को ठीक से उठा भी नहीं सका.





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