Short moral stories in hindi


                 "ईमानदारी का फल"

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माँ ने अरुण  को उठाया अरुण  उठ जा नहीं तो स्कूल मैं मास्टर की डांट खानी पड़ेगी. अरुण  डांट का नाम सुनते ही तुरंत उठ गया. अरुण नहाकर अपने कपडे पहनने लगा इतनी देर मैं अरुण  के लिए माँ ने गरमा गर्म नास्ता बनाया. अरुण को स्कूल के लिए पहले ही देर हो चुकी थी इसलिए उसने बहुत जल्दी जल्दी नास्ता किया और स्कूल के लिए चल पड़ा.


अरुण के पिता पहले सुनार की दुकान पर नौकरी करते थे. जो अब नहीं रहे. पिता के मर जाने के बाद सुनार ने भी नौकरी उसकी माँ को दे दी. क्यूंकि उसकी माँ पड़ी लिखी और एक अच्छी औरत थी. 

अरुण की माँ उसको हमेसा अच्छी अच्छी ईमानदारी की कहानियां सुनाया करती थी भी अरुण  को हमेसा ईमानदारी का पाठ पढ़ाया करती थी.सुनार की दुकान पर नौकरी करने के बाद जो रूपए मिलते थे उससे के घर का खर्चा मुश्किल से चल पता था.
सुनार ने उसके घर की परेशानी को देखते हुआ अरुण को भी अपनी दुकान पर नौकर रख लिया.

सुनार भी एक अच्छा इंसान था भी शिक्षा की जरुरत को समझता था. इसलिए उसने अरुण  को दुकान पर दो वजे के बाद आने की छुट दे दी इतनी देर मैं सोनू अपने स्कूल मैं पढ़कर सुनार की दुकान पर पहुंच जाता था.

अब सबकुछ अच्छा चल रहा था. अरुण के और उसकी माँ के दुकान पर नौकरी करने के बाद जो रूपए मिलते थे उनसे उनके घर का खर्चा अच्छे से चल जाता था.

अरुण एक ईमानदार लड़का था यह बात सुनार को बहुत पहले से मालूम थी. लेकिन सुनार ने अरुण  की ईमानदारी को आजमाने के लिए एक उपाय सोचा. सुनार ने उसकी माँ के जाने के बाद अरुण  को एक बक्सा पकड़ा दिया. 

उसको बता दिया की इसमें बहुत सी कीमती हीरे और जेबर हैँ इनको मेरे घर तक पहुंचा देना. अरुण  उस बक्से को उठा कर सुनार के घर की और चल दिया. सोनू एक बहुत ही ज्यादा ईमानदार लड़का था लेकिन फिर भी अरुण  मन मैं उस बक्से को खोलकर एक बार देखने का ख्याल जरूर आया लेकिन इसके साथ साथ उसको उसकी माँ की कहानियां अच्छे से याद थी. उसने वो बक्सा सुनार के घर पहुंचा दिया.

अगले दिन ज़ब अरुण स्कूल मैं पड़ने के बाद दुकान पर पहुंचा तब दुकानदार ने बताया की बक्सा खाली था. लेकिन फिर भी तुमने उसे मेरे घाट तक पहुंचा दिया. तुम बास्तब मैं रखा ईमानदार लड़के हो.

कुछ दिनों बाद अरुण  को सुनार ने अपने मुख्य नौकर के रूप मैं रख लिया अब उसकर जेबर की देख भाल वही करता था. अब सुनार सोनू को पहले से ज्यादा रूपए  देने लगा. धीरे धीरे सोनू बड़ा हो गया. अब सुनार ने उसे अपने पास दुकान का मैनेजर बना लिया.

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एक बार एक गुरु कुल मैं दो मित्र रहा करते थे वही  दोनों अपने गुरु की आज्ञा का पालन बड़े अच्छे से किया करते थे. वो दोनों गुरु जी के दिए हुआ काम को हमेसा समय से पहले बहुत ही अच्छे से किया करते थे. गुरु जी को भी उन पर बहुत भरोसा किया करते थे.बे उनको गुरुकुल के मुश्किल से मुश्किल काम सौंप दिया करते थे..

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एक बार गुरु जी ने रात के समय अपने दोनों सिसयो को बुलाकर कहा की आज मैं अपने काम से आज रात को ही बहार जा रहा हूं मैं कल शाम तक लोटूँगा.  मैं तुमको अपना यह बक्सा दे रहा हूं. जिसमें एक जहर हैँ. तुम दोनों को इस बक्से को बहुत ही संभाल कर रखना है.इसके बारे मैं किसी भी सिस्य को कुछ भी मत बताना. कुछ देर बाद गुरु ही चलने के लिए खड़े हुआ तब दोनों सिस्य उनको गुरुकुल के दरवाजे तक छोड़ने के लिए चलने लगे. जाते जाते गुरु ने एक बार और चेतावनी दी. इसमें बहुत तेज जहर है. तुम इसको खोल कर मत देखना अगर तुमने इसको खोल कर देखा तब तुम्हारी उसी बक्त मौत हो जायगी. साथ मैं तुम्हारे दूसरे साथी भी मारे जायँगे.

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इसे ज्यादा हवा मैं और खुले मैं भी मत रखना बरना यह तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा.

गुरु जी के जाने के बाद दोनों ने उस बक्से को बहुत ही संभाल कर रखा. लेकिन बक्सा थोड़ा बड़ा था जिसे गुरुकुल मैं कहीं भी छुपाना मुश्किल था. 

और अगर बे बक्से को सबके सामने रखते तब दूसरे सिस्य उनसे बक्से के बारे मैं कुछ ना कुछ जरूर पूछते जिससे उनको बताना पड़ता. अगर  जंगल मैं छुपाते तब इसके किसी जंगली जानवर द्वारा खोले जाने का भी डर था. अब दोनों लोग बहुत बुरी तरह फस चुके थे. इस समस्या से बाहर निकलने के लिए उन दोनों ने फैसला किया की बे आज सूरज निकलने से पहले ही इस बक्से को लेकर यहाँ से कहीं दूर चले जायँगे. उन्होंने ऐसा ही किया सुबह दोनों मित्र सूरज निकलने से पहले ही बक्से  को लेकर गुरुकुल  से चल पड़े. उनको चलते चलते काफ़ी देर हो चुकी थी. इतने मैं उस जगह पर  तेज तेज हवा चलने लगी. उनको गुरु जी की कही हुई बाते वहुत ही अच्छे से याद थी इसलिए उन्होंने. बक्से को लेकर हवा की दूसरी तरफ चलने लगे जिससे विश हवा ना फेल जाये लेकिन हवा तेज थी जिससे बक्से मैं रखा विष फेल सकता था.

हवा का चलना उनके लिए एक नयी समस्या बन चुकी थी. हवा से विष फेल सकता था. इससे निवटने के लिए उन दोनों ने उस विषय को खाने का फैसला किया.

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जैसे ही उन दोनों बे उस विषय को खोला बे उस विष को खाने लगे. खाने के बाद उन दोनों को यह पता  चला की यह तो कुछ मीठा और स्वादिस्ट पदार्थ था. उनके मन मैं एक बार को यह तो जरूर आया की यह विषय ना होकर कोई स्वादिस्ट पदार्थ हो सकता है लेकिन उनको गुरु की बात पर पूरा विश्बास था. अब बो दोनों इस विष को पूरा कहा चुके थे लेकिन उनको कुछ भी नहीं हुआ. बो पूरी तरह से ठीक थे. साथ ही साथ उनको आश्चर्य भी हो रहा  था की उनको अब तक कुछ भी नहीं हुआ. 


शाम होने को थी उनको याद था की उनको गुरु ने शाम तक बापस आने के लिए कहा था. वो अपने गुरु से मिलने के लिए गुरुकुल की तरफ चल पड़े. लेकिन उनके मन मैं उस विषय को लेकर बहुत से सवाल थे जो उनको अपने गुरु से पूछने थे. शाम तक वह लोग गुरुकुल मैं पहुंच गए. वहाँ पहुंचते ही गुरु जी ने उनके कुछ बोलने से पहले ही अपने बक्से के बारे मैं पूछा. गुरु जी को बक्सा देखते ही मन ही मन बहुत खुशी हुई. लेकिन जैसे ही उन्होंने बक्से को खोल के देखा उनकी खुशी को आश्चर्य और क्रोध मैं बदलते देर ना लगी. गुरु जी ने कड़ाई से दोनों से पूछा की उनका विष खान गया. तब उन दोनों ने जवाब दिया की बीस के फेल जाने के डर से उन्होंने उस बीस को कहा लिया. इस पर गुरु को क्रोध भी आया और अपने ऊपर लज्जा भी हुई क्यूंकि वह बास्तब मैं कोई विष नहीं एक स्वादिस्ट व्यंजन था


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