Short moral hindi stories for kids

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मित्रो आज की इस कहानी मैं आप कुछ ऐसी चीज जानने वाले हो जिनको जानकर आप हैरान हो जायगे. आप इस कहानी मैं जानोगे की आप किसी चीज को जिस इरादे से मकसद ज़े करते हैँ जरुरी नहीं की आपका वो इरादा पूरा हो जाये कई बार आपका वो इरादा पूरा नहीं हो पता है.


                      A LETTER TO GOD


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संकु नाम का एक किसान था जो अपने परिवार के साथ एक पहाड़ी पर रहा करता था. उसके तीन बच्चे और एक बीबी थी. जिन सबका उसको पेट भरना होता था. उसकी फसल हमेसा सबसे अच्छी हुआ करती थी. क्यूंकि वो सबसे ज्यादा मेहनत किया करता था. क्यूंकि वो एक पहाड़ था इसलिए वहा जमीन की कमी ना थी. वो कहीं भी कुछ सपाठ मैदान देखकर अपनी खेती कर सकते थे.
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खेती से वो लोग अपना पेट भरते थे और कुछ अनाज को बेचकर वे पैसा कमाते थे.



इस साल संकु ने काफ़ी मेहनत की उसने इस साल को भी आने वाले और गुजरने वाले सालो की तरह ही समझा था. लेकिम यह साल बहुत ही अलग था. संकुल की फसल काफ़ी अच्छी हो चुकी थी अब उसे बस एक बरसात की जरुरत थी जिसके बाद वो काटने के लायक हो जाती. लेकिन संकु को इस बात की कोई चिंता ना थी क्यूंकि. इस मौसम मैं एक बरसात हो जाया करती थी. संकु अपनी पूरी मेहनत के साथ अपने खेत मैं काम कर रहा था. और मन ही मन अपने मन मैं भगवान से प्राथना कर रहा था की जल्द ही बारिस हो जाये. जिससे वो अपनी फसल काट सके. उसकी पत्नी भी इस बात को जानती थी इसलिए वो भी अपने मन मैं बारिस होने की प्राथना करती थी. और भगवान की पूजा भी. क्यूंकि दोनों 
का भगवान मैं अच्छा बिस्वास भी था.


लेकिन इस साल काफ़ी समय बीत गया और बरसात नहीं हुई. संकुल मन कुछ उदास था. वो रोजाना की तरह अपनी फसल काट के अपने घर चला गया और उदास मन से वो खाना खा  के सो गया. इस समय ज्यादा रात तो नहीं हुई थी लेकिन संकुल इस समय काफ़ी गहरी  नींद मैं था क्यूंकि उसके सर पर पुरे दिन की थकान थी. लगभग सारे लोग सो ही चुके थे.

आसमान काफ़ी साफ था. लेकिन अब उसमें बदल वहा गए. गर्म मौसम मैं अब ठंडी हवा चलने लगी. हवा धीरे धीरे तेज होने लगी. जिससे संकु और उसके परिवार की आँख खुल गयी.रात मैं नींद खराब होते हुए उसे अच्छा तो नहीं लगा लेकिन उसने ज़ब बहार आकर देखा तो. उसकी परेशानी को खुशी मैं बदलते हुए देर ना लगी. क्यूंकि मौसम मैं अब ठंडी हवा के साथ साथ कुछ पानी की बुँदे भी मिल चुकी थी.  यह देखकर संकु और उसकी बीबी को काफ़ी खुशी हुई. क्यूंकि उनकी फसल को अब बे इस बारिस के साथ काट सकते थे. छोटे छोटे बच्चे खुशी के मारे आंगन मैं खेल रहे थे. लेकिन संकुल की इस खुशी को दुख मैं बदलते हुए देर ना लगी. क्यूंकि बारिस के साथ साथ उसके शरीर पर कुछ ओले भी गिरना शुरू हो गए थे. धीरे धीरे उन ओलो की संख्या बारिस की बूंदो से ज्यादा हो गयी. पहाड़ो पर गिरते हुए. बर्फ के छोटे छोटे टुकड़े लग तो अच्छे रहे थे लेकिन यह संकुल की फसल को कितना नुकसान पहुंचा सकते थे. यह बात संकुल जानता  था.  संकु के खुशी से भरे हुए चेहरे पर अब उदासी छा गयी. उसने अपना सर निचे कर लिया. छोटे छोटे बच्चे अभी आंगन मैं ओलो के साथ खेल रहे थे कुछ समय के बाद संकुल की बीबी ने बच्चों को डाटते हुए अंदर किया. रात मैं काफ़ी रात तक ओले गिरते रहे. जिनकी आवाज संकुल सुन रहा था. काफ़ी समय के बाद वो सो गया.

अगली सुबह संकुल जल्दी ही उठ गया. वो अभी भी उदास था. क्यूंकि उसकी सारी फसल ओलो द्वारा बर्बाद हो चुकी थी. संकुल इस बक्त अपने आप को परेशानियों से घिरा हुआ महसूस कर रहा था. क्यूंकि इस साल उसके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं रह गया था. उसके रिस्तेदार भी यहाँ नहीं रहते थे. उसके पास इस साल अपना और अपने परिवार बालो  का पेट भरने के लिए कुछ भी नहीं रह गया था.

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उसकी सारी उम्मीद भगवान से ही थी. जो उसकी फसल के बर्बाद होने के बाद भी बाकि थी. इसीलिए उसने भगवान के लिए पत्र लिखा. जिसमें उसने लिखा की भगवान उसकी सारी फसल ओलो के द्वारा बर्बाद हो चुकी है उसके पास अपने और अपने परिवार का पेट भरने के लिए कोई और साधन नहीं है. उसके रिस्तेदार भी यहाँ नहीं रहते है. उसे अब कुछ समय तक खाना खाने के लिए और अपनी अगली फसल को बोने के लिए 800 रुपय की जरुरत है. आपको बो रुपय भेजनें हैँ उसके पास कोई और उम्मीद नहीं है. संकुल ने कुछ रूपए ख़र्च करके डाकखाने की स्टीकर खरीद कर उस पर चिपका दिया.

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अगले दिन संकु ने वो पत्र, पत्र पेटी, मैं डाल दिया. डाकखाने का ऑफिसर काफ़ी मोटा और और खड़ूस इंसान था. डाकखाने के एक कर्मचारी ने पत्र को सही जगह पर पहुंचने के लिए सभी पत्रों को खोल रहा था. जिसमें उसे संकुल का पत्र भी मिला. संकुल के पत्र पर पता भगवान का लिखा हुआ था और नाम A LETTER TO GOD के नाम से था. इस पर वो काफ़ी जोर से हसा.
हसने के बाद उसने वो पत्र दूसरे कर्मचारियों को भी दिखाया. सब संकुल के उस पत्र पर काफ़ी हसे. वो पत्र डाकखाने के ऑफिसर ने भी देखा. इस पत्र वो भी काफ़ी हसा. वैसे तो डाकखाने का ऑफिसर काफ़ी खड़ूस था. लेकिन उसने सोचा भगवान मैं इतनी उम्मीद रखने वाले इंसान का भगवान से उम्मीद टूट जायगी अगर उसको इस पत्र का जबाब ना मिला.

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लेकिन पत्र का जवाब देव के लिए स्याही और कागज के अलाबा पैसो की भी जरुरत थी इसीलिए उसने वो सारे डाकखाने के सभी कर्मचारियों के साथ मिलकर उस संकुल को पैसे भेजनें का सोचा उसने अपने बेतन का एक  हिस्सा दिया जिसमें बाकि के कर्मचारियों ने भी सहायता की. लेकिन वो लोग सिर्फ 725 रुपय ही कर पाए थे. जो 800 तो नहीं थे लेकिन इससे संकुल का काम चल सकता था. डाकखाने के कर्मचारियों ने कुछ शब्दो के साथ रुपये संकुल को भेज दिए. कुछ समय के बाद संकु रुपय निकलने आया सभी लोग अब उस आदमी को पहचान चुके थे. लेकिन सब चुप रहे क्यूंकि उनको संकुल को विश्बास दिलाना था. की यह सारे के सारे रुपये भगवान ने उसके लिए भेजे हैँ.

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संकु ने अपने घर पर जाकर उस पत्र को खोला. उसमें उसने कर्मचारियों के द्वारा लिखें हुए शब्द पड़े और पैसो को गिनना शुरू किया. उसने पैसे गिने और मन ही मन भगवान को धन्यबाद किया. लेकिन यह पैसे उतने नहीं थे जितनी उसको जरुरत थी.

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इसीलिए अगले दिन उसने एक और पत्र लिखा और डाकखाने जाकर उसने उस पत्र को डाक पेटी मैं डाल दिया. बैसे तो उसके पत्र को बाद मैं खोला जाना था लेकिन डाकखाने के सभी लोग उस आदमी को पहचान चुके थे. इसीलिए उसके जाते ही सभी ने उसके पत्र को खोला और पड़ना शुरू किया. जिसमें लिखा हुआ था की भगवान मैं आपका धन्यवाद करता हूं आपके भेजे हुए पैसे मुझे मिल गए है. लेकिन वो पैसे उतने नहीं है जितने मैंने मांगे थे. मुझे पता है की अपने पुरे पैसे भेजे होंगे लेकिन डाकखाने के लोग बहुत बेईमान है. उन्होंने इसमें से कुछ पैसे निकल लिए हैँ. मैं आपसे प्राथना करता हूं की
आप मुझे बाकि के पैसे भेज दीजिये.


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