Hindi stories with moral

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Hindi stories with moral मित्रो आज इस आर्टिकल मैं आप कुछ ऐसी कहानिया पड़ेंगे. जो आपको जैसा का तैसा सिखायंगी 

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 एक समय की बात है ज़ब लोग गधे से अपना सामान ले जाया करते थे. एक व्यापारी था जो नमक को गाँव से ले जाकर अपने शहर मैं बेचा करता था.
उससे उसको जो कमाई होती थी उससे वो ख़ुश रहता था.वो नमक के व्यापार मैं कभी भी बेमानी नहीं किया करता था. वो अपने गधे को अच्छा खासा चारा भी खिलता था. लेकिन उसका गधा बहुत ही अलसी था. वो हमेसा काम से बचा करता था.


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ज़ब व्यापारी अपने गधे से सामान को शहर मैं ले जाया करता था. तब रास्ते मैं एक नाला पड़ता था. जो  ना ही ज्यादा गन्दा था और ना ही ज्यादा घरा था इसलिए जिसको भी. शहर जाना होता था वो उसी नाले को पर करके जाता था. वो व्यापारी भी अपने गधे के साथ उसी नाले को पार करके शहर जाता था.एक दिन व्यापारी गधे को नाले पे खड़ा करके कुछ समय चाय पीने लगा. गधा अलसी था. इसलिए वो मौका पाकर नाले के पानी मैं ही बैठ गया. नाली के पानी मैं बैठने से उसके बोर मैं से कुछ नमक पानी मैं घुल गया.
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थोड़ी ही देर तक बैठने के बाद उसके नमक का एक बड़ा हिस्सा पानी मैं ही घुल गया. जिससे उसे नमक का बोझ को उठाने मैं आसानी हुई. अब गधा रोजाना ऐसा ही करने लगा. अब वो रोजाना नाले के पानी मैं बैठकर नमक को पानी मैं मिला देता था.व्यापारी को कुछ दिनों तक तो कोई भी फर्क मालूम नहीं हुआ. लेकिन कुछ समय के बाद व्यापारी को अब अपना नुकसान दिखने लगा. उसने अपना नुकसान पता करने के लिए काफ़ी मेहनत की लेकिन उसे पता नहीं लग पा रहा था की उसका नुकसान कहा से हो रहा है.

लेकिन एक समय के बाद उसको पता लग गया की उसका गधा नाले के पानी मैं बैठ जाता है. जिससे वो शहर मैं कम नमक लता है और कम नमक ही बेच पता है जिससे उसे कम फायदा होता है. व्यापारी गधे पर काफ़ी ग़ुस्सा हुआ लेकिन व्यापारी ने गधे को मरने से अच्छा उसे दूसरे तरीके से सबक सिखाने का सोचा.

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व्यापारी ने एक दिन नमक के बोर की जगह उसमें कपास को भर दिया. कपास का बजन काफ़ी भरने के बाद भी कपास का बजन काफ़ी हल्का था लेकिन गधा आज भी पानी मैं बैठ गया. लेकिन आज बोरे  मैं नमक की जगह कपास था इसलिए कपास पानी मैं जाने के बाद काफ़ी भारी हो गया. कपास का बजन काफ़ी ज्यादा था.

 जिसको गधा को उठाने मैं काफ़ी परेशानी हुई लेकिन अब उसको बजन तो उठाना ही था. व्यापारी को शहर जाकर कपास तो बेचना था नहीं लेकिन व्यापारी ने फिर भी गधे को पुरे दिन शहर मैं घुमाया और शाम को उसे घर ले आया. शाम को घर आते बक्त भी उसके शरीर पर उतना ही बजन था जितना की पहले. क्यूंकि व्यापारी धीरे धीरे कपास मैं पानी डाल रहा था. गधे की घर पहुँचते पहुँचते हालत काफ़ी ख़राब हो गयी. अब उसको अपने किये का अच्छा सबक मिल चूका था.











मित्रो बहुत पुराने समय की बात है. एक बार एक जंगल मैं एक लोमड़ी और एक सारस रहा करता था. बे दोनों आपस मैं थर तो मित्र लेकिन लेकिन उनमे से लोमड़ी हमेसा चालाकी करती रहती थी. वो हमेसा सारस को मुसीबत मैं फसा दिया करती थी. एक बार लोमड़ी ने सारस की अपने यहां पर दाबत की. दाबत मैं लोमड़ी ने अपने यहां पर खीर बनाई थी. यह बात लोमड़ी ने सारस को पहले से ही बता रखी थी. रात को सारस लोमड़ी के घर पहुँच गया. लेकिन लोमड़ी ने खीर को एक बर्तन  मैं रखा हुआ था. लोमड़ी तो अपनी जीब से सारी खीर चाट गयी. लेकिन यहां सारस भूखा रह गया.
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 क्यूंकि सारस के पास खीर को चाट कर खाने के लिए जीब ना थी. काफ़ी कोसिस करने के बाद भी सारस अपना पेट नहीं भर पाया. अपने घोसले मैं आकर वो भूखा ही सो गया. उसके पास और खाना भी नहीं था. वैसे तो लोमड़ी ने इससे पहले भी कई बार सारस को कई बार परेशान किया था. लेकिन इस बार उसे पूरी रात भूखे पेट ही सोना पड़ा था. उस रात सारस लोमड़ी पर बहुत ग़ुस्सा हुआ. कुछ समय के बाद सारस और लोमड़ी फिर से अच्छे दोस्त हो गए.

 लेकिन सारस अब भी लोमड़ी की उस बात को भुला नहीं था. एक दिन सारस ने लोमड़ी को अपने घर पर दाबत पर बुलाया. सारस्वत ने दाबत मैं खिचड़ी बनाई थी. उस से वहा पर सारस के और भी मित्र भाई थे जो सारसे ही थे. दाबत मैं बात यह थी की इस बार खिचड़ी एक लम्बी सुराही मैं परोसी गयी थी. जिसके चलते लम्बी गर्दन बाले सारस तो अपना पेट आराम से भर पाए लेकिन यहां लोमड़ी जिसका बड़ा सा मुँह था वो अपना पेट नहीं भर पायी. इस बार लोमड़ी दूसरे सारस के सामने बाहर सर्मिन्दा हुई. अब लोमड़ी मन ही मन अपने किये पर पचता रही थी. दुवारा सारस को कभी भी परेशान ना करने की सोच चुकी थी. क्यूंकि अब उसको अपने किये का फल मिल चूका था.


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