panchatantra stories in hindi


                 panchatantra stories in hindi

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मित्रो आज आप इस आर्टिकल मैं ऐसी कहानीया जानने वाले हो जिनको जानकर आपका मनोरंजन तो होगा ही इसके साथ साथ आपको आपके जीवन को जीने के लिए बहुत सी ऐसी जानकारी मिलेगी जो हो सकता है की आपका जीवन ही बदल दे



                         साधु और जामुन

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मित्रो आज आप एक ऐसी कहानी सुनने वाले हो हो जिनको सुनकर आप जान जाओगे की कैसे एक महात्मा अपनी चीज़ो पर कैसे काबू पा लिया. इसको सुनकर हो सकता है की आप अपने जीवन मैं काबू पाना सिख जाओ.

एक समय की बात है. एक साधु कठोर तपस्या के बाद किसी जगह से लोट रहे थे. जो बहुत ही ज्ञानी थे. उनको अपने ऊपर काबू रखना आता था. रास्ते मैं उन्हें एक जामुन वाले की दुकान दिखाई दी उनका मन जामुन की और ललचाया. साधु थे तो काफ़ी ज्ञानी. लेकिन वो इससे पहले भूखे रहकर काफ़ी तपस्या कर चुके थे. इसीलिए वो जामुन की और ललचाय. लेकिन साधु जामुन को छोड़कर आगे की और चल दिए उनके पेर तो आगे की और चल दिए लेकिन उनका मन अभी भी जामुन मैं था.

साधु चलते रहे और चलते चलते अपने घर पहुँच गए वो जामुन से काफ़ी दूर आ चुके थे. लेकिन उनके  मन मैं अभी भी जामुन थे.

साधु रात को कुछ काम करने के बाद सो गए. अपने बिस्तर पर लेट गए. लेकिन उनका और सोने की कोसिस करने लगे लेकिन उनको जामुन के कारण अभी  नींद नहीं आ रही थी. रात को कुछ देर तक लेटने के बाद उनका मन जामुन को याद करके ब्याकुल होने लगा.

अब तक बे जामुन की याद मैं इतने अपने सारे ज्ञान को भूल चुके थे.

बे रात को ही अपनी कुटिया ज़े निकले और जाकर जंगल से कुछ लकड़िया काटने लगे. क्यूंकि उनको उन लड़कियों को शहर मैं ले जाकर बेचना था.

साधु ने लकड़ियों को काटा और अपने सर पर रखकर शहर की और चल दिया. लकड़ियों का बजन बहुत ज्यादा  था.

जिसको उठाना साधु की बसकी बात नहीं थी लेकिन साधु ने फिर भी उन को लेकर शहर के रास्ते पर चल रहा था. रास्ते मैं कई जगह पर साधु गिरा भी लेकिन साधु उन सभी चीज़ो को बर्दास्त करके शहर की और चल रहा था.

क्यूंकि उसके मन मैं इस बक्त सिर्फ जामुन ही थे उनके अलाबा कुछ भी नहीं.

साधु सुबह होते होते शहर पहुँच गया. साधु ने शहर जाकर लकड़ियों के उस ढेर को बेचा.लकड़ियों को बेचकर जो पैसे मिले उनसे साधु को जामुन खरीदने थे.
इसीलिए साधु जामुन की दुकान की और चल पड़ा.

काफ़ी दूर चलने के बाद उसे जामुन की दुकान मिल गयी. साधु ने दुकानदार से जामुन ख़रीदे.

जामुन खरीदने के बाद उसके सर से जामुन का पागलपन उत्तर गया. क्यूंकि जिसके लिए बो पागल था अब वो चीज उसे मिल चुकी थी.

उसका ज्ञान जो जामुन के पागलपन से दब चूका था वो बहार आया उसने सोचा आज मुझे इन जामुन का लालच हुआ है कल को मुझे किसी और चीज का लालच होगा. मैं उसे भी पाने के लिए मेहनत करूँगा. उसके बाद मैं सांसारिक चीज़ो मैं पड़ जाऊंगा और मैं एक साधु से एक साधारण व्यक्ति बन जाऊंगा और मेरा ज्ञान मेरी तपस्या सब कुछ ब्यर्थ हो जायगा.

साधु ने कुछ सोचने के बाद उन जामुनो को पास ही बैठे एक व्यक्ति को दे दिया जो उसके कपड़ो से कुछ गरीब लग रहा था.

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                            घमंडी घोड़ा

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एक राजा थे जिनको जानबर बहुत अच्छे लगते थे.राज्य के अलग अलग जानबरो को अपने यहां रखते थे. जो जानवर उनके राज्य मैं नहीं होते थे बे उनको दूसरे गाँवों से मंगाकर अपने राज्य मैं रखा करते थे.
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बैसे तो उनको सभी जानवर प्रिय थे लेकिन उनको उनका एक घोड़ा जान से भी ज्यादा प्यारा लगता था. राजा घोड़े के हर समय तारीफ करते रहते थे. बे जहाँ भी जाते थे अपने घोड़े को साथ लेकर जाते थे. अगर कहीं उनके घोड़े का ख्याल नहीं रखा जाता था बे उस जगह दोवारा नहीं जाते थे. घोड़ा घास फुस खाने की जगह अच्छे अच्छे खाने खाता था. ज़ब कोई त्यौहार होता था तो घोड़े के लिए ऐसे पकवान बनाये जाते थे जो सायद उनकी जानता को भी नसीब ना हो.

घोड़ा भी यह बात जानता था. क्युकी उसको बाकि के जानवरो से अलग रखा जाता था और उसे ज्यादा अच्छा खाना भी दिया जाता था. शुरू मैं तो सब कुछ ठीक थक चल रहा था.

लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया

घोड़ा घमंडी होता गया. अब बो दूसरे जानवरो को चिढ़ाता था. या कभी कभी अन्य जानवरो को बुरा भला भी खाना देता था. लेकिन वो घोड़ा राजा का प्रिय घोड़ा था इसीलिए दूसरे जानवर घोड़े से कभी भी दुश्मनी या लड़ाई नहीं करते थे.

यहां तक तो ठीक था लेकिन अब घोड़े का घमंड राजा पर भी सबर हो चला कभी कभी सफर मैं घोड़ा चलते चलते रुक जाता था. क्यूंकि वो राजा का प्रिय घोड़ा था इसीलिए उसे कोई भी मरने की हिम्मत नहीं करता था राजा के पूचकारने के बाद घोड़ा चलने लगता.घोड़ा अब किसी सफर मैं दो दो बार भी रुक जाया करता था. लेकिन उससे कोई भी कुछ नहीं कहता था.

यह सब देखकर घोड़ा मैं अब और भी घमंड आ गया. अब वो समझता था की राजा की जान अब उस घोड़े मैं ही बस्ती है.

एक बार राजा को किसी समारोह मैं जाना था. घोड़ा जानता था की राजा उसके बिना समारोह मैं नहीं जा सकता. घोड़े को राजा को सताने का एक अच्छा रास्ता मिल गया. घोड़ा राजा के समारोह मैं जाने से कुछ दिन पहले बीमार होने का नाटक करने लगा. उसने खाना पीना भी कम कर दिया जिससे वो सच मैं कमजोर पड़ गया अब कोई भी उसे देखकर बीमार बता सकता था. घोड़े को देखने के लिए राज्य वैधय आये राज्यबेधय ने भी घोड़े को बीमार बताया.

घोड़ा सोच रहा था की राजा उसके पास आकर उसे मनायगा और जिससे उसका लोग उसे राजा के और भी करब समझने लगेंगे. हुआ भी ऐसा ही राजा ने घोड़े को आकर देखा.

राजा  ने अप ने बेधय से बात की और  उसके ठीक होने के बारे मैं पूछा.बेधय  ने राजा को सलाह दी  की अगर उनका घोड़ा तीन दिनों के अंदर ठीक हो  जाये तो ठीक है बरना वो अपने  लिए दूसरा  घोड़ा ले ले इसके  जाने का समय हो चूका है


घोड़े को उम्मीद थी की राजा ऐसा करने से मना कर देगा और उल्टा बेधय पर ग़ुस्सा करेगा लेकिन इसका बिलकुल उल्टा हुआ राजा ने बेधय की बात मन ली और घोड़े को ठीक होने के लिए तीन दिन का समय दिया.

अब घोड़ा काफ़ी उदास हो गया.इस बात की चिंता उसे सताने लगी जिसकी बजह से बो सचमूंच मैं बीमार पड़ गया. अब उसको अपना सबकुछ छीन जाने की चिंता सताने लगी.

इसी समय उसी जगह रहने के लिए एक बकरा आया जो उस घोड़े के पास ही रहा करता था. बाकि के सभी जानवरो को तो घोड़ा चिढ़ाता रहता था. लेकिन बकरा उस जगह पर नया था. इसीलिए घोड़े ने बकरे को अपनी बात सुनाई.

घोड़े ने बकरे से कहा "मैं राजा का सबसे अच्छा जानवर हुआ करता था. लेकिन अब उसने घमंड मैं आकर सब कुछ बर्बाद कर लिया है.  उसने अब राजा की नजरों मैं अपनी इज्जत गिरा ली है. अब राजा उसका इलाज भी अच्छे से नहीं करवा रहा है. अगर वो तीन दिन मैं ठीक नहीं हुआ तो कोई और उसकी जगह ले लेगा.

बकरे को यह सुनकर काफ़ी दुख हुआ उसने घोड़े की सिफारिस राजा से करने के लिए कहा. घोड़े  को लगा की सायद अब हो सकता है की राजा उसे दोवारा से उसे अपना लेगा.

बकरे ने राजा से मिलने के लिए अपील की.

कुछ समय के बाद बकरे की अपील के अनुसार बकरे को राजा के सामने पेश किया गया.बकरे ने राजा से कहा उनका घोड़ा राजा के लिए बहुत चाहता है. वो  हर समय राजा की तारीफ करता रहता है.

इससे राजा ने भी घोड़े के बारे मैं सोचा और उसका इलाज कराने के लिए अच्छे अच्छे बेधयो को बुलबाया
कुछ समय के बाद घोड़ा ठीक हो गया. एक बार फिर घोड़ा राजा का प्रिय जानवर बन गया. जिस दिन घोड़ा ठीक हुआ. उस दिन घोड़े के लिए तरह तरह के पकवान बनाये गए. उसी दिन राज्य मैं राजा ने घोड़े की कई मुर्तिया बनबाई. और राजा ने अपने सभी लोगो के लिए महल मैं दावत पर बुलाया

लेकिन इसी सब के बिच वो बकरा जिसने घोड़े की सिफारिस की थी वो एक खाने के रूप मैं किसी के आगे परोसा जा चूका था.




  • शिक्षा- कभी कभी आपको अपने काम से काम रखने मैं फायदा होता है. बिना सोचे समझें किसी के काम मैं ऊँगली  नहीं करनी चाहिए.


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