panchatantra stories in hindi


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 आज आप कुछ ऐसी कहानिया जानने वाले हो जिनको पड़ने के साथ साथ आप अपनी जिंदगी के लिए कुछ ऐसी चीज़े सीख पायगे जो आपको आगे जीने मैं बहुत मदद करेंगी.
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                   दुसरो से पहले खुद की मदद

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एक बार एक लोमड़ी मास खा रही थी मास खाते खाते उसके गले मैं मास मैं सी निकली एक हड्डिया अटक गयी. लोमड़ी ने उसे निकलने की बहुत कोसिस की लेकिन लोमड़ी उसे नहीं निकल सकी. लोमड़ी की आवाज़ भी अब मुश्किल से निकल रही थी.लोमड़ी के गले से अब थोड़ा थोड़ा खून भी आने लगा. लोमड़ी के गले मैं अब बहुत तेज़ दर्द हो रहा था. अब लोमड़ी को अपनी मौत पास ही नजर आ रही थी.

लेकिन वहाँ कुछ ही देर मैं वहा से एक बगुला निकल रहा था जो वहा मछली पकड़ने आ रहा था.

लोमड़ी ने जैसे ही उस बागुले को देखा लोमड़ी ने उसकी और बड़ी और उससे बड़ी मुश्किल से  आवाज़ निकलते हुए उसने बगुले से मदद मांगी.

लेकिन बगुले ने खा की वो इसमें लोमड़ी की मदद कैसे कर सकता है.

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लोमड़ी ने बगुले ने लोमड़ी को समझाया की उसकी गर्दन पतली और लचीली है अगर वो उसके गले मैं अपनी चोच डालकर उसके गले मैं हिलगी हुई हड्डिया निकल दे तो लोमड़ी बच सकती है

बगुले अभी भी सोच मैं पड़ा हुआ था.

लोमड़ी ने बगुले को देखते हुए खा अगर वो उसके गले की हड्डिया निकल देगा तो वो उसको इनाम देगी.

बगुला मान गया.

बगुले ने लोमड़ी के गले अपनी गर्दन डालकर उसके गले से हड्डिया निकल दी.

अब बगुले ने लोमड़ी से अपना इनाम माँगा.

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लोमड़ी ने कहा
"उसका इनाम लोमड़ी के गले मैं है "
बगुले ने लोमड़ी के गले मैं दोवारा से अपनी गर्दन डाली और उससे पूछा उसे अपना इनाम कही नहीं दिख रहा. इस बार लोमड़ी ने बगुले से कहा अगर वो उसकी गर्दन को ऐसे ही अपने दांतो से दवा ले तो उसको उसका इनाम मिल जायगा.

बगुला लोमड़ी बात को समझ चूका था. यह बात सुनते ही बगुले ने अपनी गर्दन को लोमड़ी की गर्दन से निकलने की कोसिस की.
लेकिन तब तक देर हो चुकी थी लोमड़ी अब तक बगुले को अपना खाना बना चुकी थी


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                      कलयुग मैं सत्संग 

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मित्रो एक समय कु बात है.ज़ब एक चोर जो मरने जा रहा था. उसने अपने बेटे को बुलाकर कुछ बताने का सोचा. जो उसने अपने पुरे जीवन मैं पाया था.

उसने अपने बेटे से कहा की बेटा अगर कभी भी तुम चोरी करो तो कभी भी गुरुद्वारे, मस्जिद और मंदिर से हमेसा दूर रहना इनके पास कभी भी मत जाना, दूसरी बात अगर कभी भी तुम चोरी करते हुए पकड़े जाओ. तो कभी भी यह मत स्वीकारना की तुमने चोरी की है. पिता के इतने शब्द कहते ही उनकी मौत हो गयी.

चोर ने उनका अंतिम संस्कार किया.

और कुछ समय के बाद उसने अपना चोरी का काम शुरू कर दिया क्यूंकि पिता ने उसके लिए जो चोरी की राशि इखट्टी की थी वो अब ख़तम हो चुकी थी. वो धीरे धीरे बड़ी छोरिया करने लगा. वो रोज की तरह चोरी कर ही रहा था की उस दिन उस घर के लोग रात मैं भी जागे हुए थे. उन्होंने चोर को देखते ही शोर मचाना शुरू कर दिया.वो ज्यादा पुराना चोर नहीं था. इसीलिए उसके साथ यह पहली वर हुआ था. इससे वो पूरी तरह घबरा गया.और सबकुछ कुछ छोड़कर उलटे सीधे रास्तो पर भागने लगा. उस घर के लोगो ने भी पुलिस को बुला लिया. चोर उलटे सीधे रास्तो पर भाग रहा था. इसीलिए वो वहा से दूर नहीं जा पाया. कुछ समय के बाद उसको ढूंढ़ते हुए पुलिस वाले वहा आ रहे थे. चोर अपनी जान बचाने के लिए वहा से भागकर एक धर्मशाला मैं छीप गया जहाँ सत्संग हो रहा था. धर्मशाला मैं छीपने से पहले उसके मन मैं एक बार उसके पिता का ख्याल तो आया लेकिन लेकिन उसके पीछे पुलिस पड़ी हुई थी इसीलिए धर्मशाला मैं ही छीप गया. यह सोचकर की यहां पुलिस उसे नहीं ढूंढ पाएगी. लेकिन धर्मशाला के लोगो ने शोर मचाकर पुलिस को बता दिया चोर धर्मसाला9 मैं छिपा हुआ है. पुलिस चोर को पकड़ने के लिए भागी. चोर ने धर्मशाला मैं से भी भागने की कोसिस की लेकिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

लेकिन ज़ब चोर धर्मशाला मैं था तब उसने एक सत्संग का एक बचन सुन लिया जो था की
"देवी या देवताओं की परछाई नहीं होती है"
 पुलिस उस चोर को पकड़ कर जेल मैं ले गयी. कुछ दिनों तक उसे जेल मैं ही भूखा रखा उसजे बाद उसे अपनी चोरी कबूल करने के लिए कहा गया. लेकिन चोर को अपने पिता की कही बात याद थी. उसने बहुत ज्यादा मर खाने के बाद भी अपनी चोरी कबूल नहीं की. उन दिनों एक नियम हुआ करता था जिसके अनुसार किसी को तब रखा सजा नहीं दी जाती थी ज़ब तक कोई अपना गुनाह अपनी जुबान से ना स्वीकार ले.

वो था तो चोर लेकिन शेर वाली देवी का सच्चा भक्त था. इसीलिए वो हमेसा देवी का नाम लेकर उन्हें याद करता रहता था. यह बात वहा के पहरेदार जान चुके थे. कुछ पुलिस वालो ने चोर से अपना गुनाह को उसके मुँह से कहलवाने के लिए एक तरकीब निकाली.

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उन्होंने एक औरत को शेर वाली देवी का श्रृंगार करवाया और उसको बिलकुल देवी की तरह सजा कर शेर के ऊपर बैठा दिया.इस ड्रामे मैं जेल के सभी लोग मिले हुए थे इसीलिए जेल के दरवाजे देवी के इशारा करते ही खुल गए. देवी ने जेल मैं प्रवेश किया.

 देवी को देखते ही चोर का सारा दुख एक पल मैं ही खुशी मैं बदल गया. चोर को यह देखकर अपनी खुशी का ठिकाना ना रहा. अब देवी चोर से जो भी बात कहती वो चोर आसानी से कर सकता था. देवी ने चोर से पहले कुछ बाते की इसके बाद उससे चोरी के बारे मैं पूछा. देवी ने कहा की क्या तुमने चोरी की है. अगर वो देवी के सामने अपनी चोरी कबूल कर लेगा. तब देवी उसे जेल से रिहा करवा देगी.थानेदार और कुछ लोग जेल के दरवाजे पर ही कोने मैं बैठे हुए थे. जिससे बे चोर की चोरी को उसके मुँह से बताते हुए कागज पर लिख ले और कुछ लोग उसके मुँह से ही चोरी करते हुए सुन ले और राजा के सामने गवाही दे दे.

चोर अपनी चोरी देवी को बताने लगा. लेकिन ज़ब वो अपनी चोरी के अंतिम शब्द बताने जा रहा था. जिससे यह सिद्ध हो जाता की उसने ही चोरी की है. तब उसे देवी की परछाई दिखाई. इतना पीटने के बाद भी उसे सत्संग का वो बचन याद था. जिसमें महात्मा ने कहा था की देवी देवताओं की कभी परछाई नहीं होती.यह देखते ही वो समझ गया की वो औरत देवी नहीं कोई और है जो देवी का रूप बदलकर आयी है. यह देखकर उस चोर ने अपनी जुबान तुरंत बंद कर ली और अपनी चोरी कबूल नहीं की. औरत ने उससे काफ़ी अच्छी अच्छी बाते की लेकिन चोर ने अपनी चोरी कबूल नहीं की. क्यूंकि उसको पता था की वो देवी नहीं औरत है.

उसके बाद पुलिस ने उस  और मारा लेकिन चोर ने अपनी चोरी कबूल नहीं की. पुलिस वालो ने उसे भूखा ही रखा. काफ़ी दिनों के बाद पुलिस ने उसे जेल से रिहा करवा दिया.

जेल से आने के बाद चोर ने सोचा की सत्संग के एक बचन ने उसकी जिंदगी जेल मैं कटने बचा ली. अगर  सत्संग को रोजाना पड़े तो उसके लिए तो उसके लिए काफ़ी फायदेमंद रहेगा.

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सत्संग पड़ने के बाद भी उसने कुछ दिनों तक चोरी को जारी रखा लेकिन कुछ दिनों तक सत्संग पड़ने के बाद चोर इतना बदल गया की उसने चोरी करना ही छोड़ दिया.

चोर सत्संग पड़ने के बाद एक साधु बन गया. अब उसके पास बड़े बड़े लोग उसका सत्संग सुनने आते थे.

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