panchatantra short stories in hindi with moral
panchatantra short stories in hindi with moral
मित्र आज आप कुछ ऐसी कहानिया पड़ने जा रहे हो जो आपको खाली समय मैं आपको मनोरंजन तो देंगे ही इसके साथ ही साथ आप इससे कुछ ऐसी शिक्षा भी जानोगे जो आपको आपके जीवन मैं बहुत मदद करेंगी.Asavdhani ka fal
इसी बिच हंस के पास एक उल्लू वहा उड़के आ गया.हंस दिखने मैं काफ़ी सुंदर था. इसीलिए उसने हंस की तरफ दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाया.
उल्लू की दोस्ती अब हंस से हो गयी. कुछ ही समय मैं दोनों आपस मैं लाफ़ी अच्छी मित्र हो गए बे अब दोनों साथ मैं रहकर काफ़ी अच्छा बक्त बिताते थे. दोनों साथ मिलकर नदी से खाने के लिये चीज़े ढूंढ़ते थे और बाद मैं उनको बातो के साथ मजे से खाते थे.
समय ऐसे ही बीत रहा था.
कुछ समय बाद उल्लू को अपनी पुरानी जगह की याद आने लगी. उसको वहा के अपने पुराने मित्र और अपना घोंसला याद आने लगा.
अब उल्लू ने वहा से जाने का फैसला लिया. उल्लू ने हंस से अपने साथ चलने के लिए कहा लेकिन हंस ने जाने से मना कर दिया. हंस ने कहा
"मित्र ज़ब यह नदी सुख जायगी तब मैं तुम्हारे पास आकर रहने लगूंगा"
उल्लू इस बात पर राजी हो गया एक दिन उल्लू भर पेट खाना खाकर वहा से उड़ गया और अपने घर पहुंच गया.
उल्लू कुछ ही से उड़ने के बाद अपने घर पहुंच गया.
यहां हंस के दिन तो अच्छे बीत रहे थे. लेकिन कुछ समय के बाद वहा की नदी का पानी धीरे धीरे कम होने लगा और वो दिन आ ही गया ज़ब नदी पूरी तरह से सुख गयी.
ज़ब नदी सुख गयी तब हंस को उल्लू की बाते याद आयी. उल्लू से हंस ने कहा था की ज़ब नदी सूखने लगे तब वो उसके पास आकर रहने लगेगा.
हंस ने ऐसा ही किया कुछ दिनों के बाद हंस उल्लू के घर के लिए निकल गया.
हंस उल्लू के पास रात के समय पर पहुँचा वहा उल्लू एक पेड़ के कोटर मैं रहा करता था. हंस ने पेड़ के पास जाकर आवाज़ लगाई. आवाज़ सुनते ही उल्लू ने हंस को अंदर बुला लिया.
लेकिन हंस के आने के बाद उसी पेड़ के नीचे कुछ शिकारी आ गए. ज़ब सुबह हुई तो शिकारी अपने शुभ दिन के लिए मन्त्र का उच्चारण करने लगे. मन्त्र की आवाज़ सुनकर उल्लू चीखा उल्लू के चीखने को शिकारीयों ने अबसगुन माना और उल्लू पर निशाना लगने लगे. उल्लू अपनी और तीर को आता देखकर उस जगह से तुरंत उड़ गया लेकिन वो तीर अब उल्लू की जगह हंस को लग गया.
शिक्षा-नयी जगह पर हमेसा सावधान रहना चाहिए.
मुर्ख मेंढक
हंस जिस जगह उतरा वही एक मेंढक भी रहा करता था जो जमीन पर ही रहा करता था उसने अभी तक टापू पर रहने के बाद भी समुद्र नहीं देखा था.
हंस को देखकर मेंढक ने हंस से पूछा तुम कहा से आये हो. हंस ने जवाब दिया की वो समुद्र से उड़ते उड़ते आया है. मेंढक ने फिर पूछा समुद्र कितना बड़ा है. हंस ने जवाब दिया. समुद्र बहुत बड़ा है. मेंढक ने एक जगह पर हाथ रखते हुए कहा. इतना बड़ा हंस ने कहा नहीं समुद्र बहुत बड़ा है .
मेंढक ने पीछे हटते हुए कहा "इतना बड़ा"
हंस ने फिर कहा "नहीं समुद्र इससे भी बड़ा है "
इस बार मेंढक कुछ छलानगे मरते हुए कहा "इतना बड़ा "
हंस फिर से वही कहा
इस बार मेंढक को हंस की बात पर बिस्वास करना मुश्किल हो गया उसने हंस को बुरा भला कहते हुए कहा कोई भी चीज इतनी बड़ी नहीं हो सकती थी. तुम झूठ बोल रहे हो. मेंढक के शब्दो मैं काफ़ी क्रोध था.
इस बार हंस उस जगह से उड़कर टापू पर ही दूसरी जगह पर जा पहुंचा. और वहा जाकर उसने अपना खाना ढूंढ कर खाया और आराम करके वहा से उड़ गया.
शिक्षा -मुर्ख को समझाने से कोई भी फायदा नहीं होता है. इससे बस सिर्फ आपके समय का ही नुकसान होता है.
चतुर मेंढक
एक बार एक जंगल मैं एक शेर रहा करता था. जो रोज काफ़ी जानवरो को मारकर कहा जाता था. इसके साथ साथ वो कुछ जानवरो को ऐसे ही मार कर छोड़ दिया करता था.शेर अधिकतर जानवरो को मारकर छोड़ दिया करता था. वो मारे हुए जानवरो मैं से बहुत ही कम जानवरो को खाता था.इस बात से जंगल के दूसरे जानवर बहुत परेशान थे. एक दिन कुछ जानवरो ने मिलकर जंगल के दूसरे जानवरो को बुलाया और उनके साथ एक सभा की जिसमें सबका कहना था की अगर उनमे से रोजाना एक जानवर शेर के पास खुद ही चला जाये तो शेर रोज सिर्फ एक ही जानवर को को खायगा. इससे बे सभी लोग लम्बे समय तक सुरक्षित भी रहेंगे.
एक जानवर ने शेर को जाकर यह खबर दे दी. शेर के लिए यह खबर तो खुशी की थी क्युकी अब उसे अपना शिकार पाने के लिए मेहनत भी नहीं करनी पडती. इसीलिए शेर ने इस पर हामी भर दी.
अगले दिन शेर के पास एक जानवर उसका खाना बनने के लिए पहुँच गया. अब रोजाना ऐसा ही होने लगा. शेर रोज एक जानवर को मारकर कहा जाता था. काफ़ी दिनों तक ऐसा ही चलता रहा. एक शेट के पास जाने की बारी एक खरगोश की थी. खरगोश इस बात से काफ़ी डर गया. उसने वहा से भागने की कोसिस भी की लेकिन सब बेकार रहा. खरगोश ने जानवरो के सामने अपनी जान की भीख मांगी. लेकिन जानवरो ने जबरदस्ती शेर के पास भेज दिया.
खरगोश था तो काफी छोटा लेकिन उसने अपनी जान बचाने के लिए अपना दिमाग़ चलाया. उसके दिमाग़ मैं एक नयी तरकीब आयी.
खरगोश शेर के पास जान बूझकर देरी से गया. देरी से जाने पर शेर काफ़ी ग़ुस्सा हुआ.
शेर ने खरगोश से ऊँची आवाज़ मैं कहा"क्या रे खरगोश तुझे आने मैं इतनी देरी क्यों हो गयी"
खरगोश आया तो जानबूझकर देरी से था लेकिन उसने शेर के पूछने पर डरी हुई आवाज़ नैन जवाब दिया.
"वो निकला तो समय पर था लेकिन उसे रास्ते मैं एक दूसरा शेर मिल गया. जो उसे खाने के चक्कर मैं था.वो बड़ी मैं बड़ी मुश्किल से जान बचाकर यहां आ पाया है "
इस पर शेर क्रोधित हुआ.और उसने खरगोश के साथ उस जगह जाने का फैसला किया जहाँ वो दूसरा शेर रहता है.
खरगोश उसे वहा से दूर एक कुए के पास ले गया. कुए के पास पहुंचकर शेर ने कहा
"दिखा कहा है तेरा दूसरा शेर जो तुझे रोक रहा था"
खरगोश ने कहा
"वो अभी कुए के अंदर ही है "
शेर ने यह बात सुनकर कुए के अंदर अपना मुँह डाला उसमें उसको अपनी ही परछाई दिखी जिसको वो दूसरे शेर की परछाई समझा.
शेर उसको मरने के लिए कुए के अंदर ही खुद पड़ा.
लेकिन पानी मैं गिरते ही शेर खरगोश की चल समाज चूका था. और बहार आने की कोसिस करने लगा.
लेकिन अब काफ़ी देर हो चुकी थी शेर कुछ देर के बाद उस कुए मैं ही मर गया.
शिक्षा- मित्रो मुश्किल समय मैं भी समझदारी और बुद्धि से काम लेने पर आप बड़ी से बड़ी मुसीबत को ताल सकते है.
अंधविश्वास का फल
एक एक बंदर अपने झुण्ड से बिछड़ गया. वो बंदर बिछड़ने के काफ़ी समय के बाद भी नहीं मिला. एक दिन अचानक वो रात के समय वो अपने झुण्ड मैं आ गया रात मैं तो सभी बंदर सो रहे थे इसीलिए रात मैं किसी ने कुछ भी नहीं देखा लेकिन सुबह होते ही सभी बंदर उसका मज़ाक उडाने लगे.
क्युकी अब तक वो अपनी पूछ कही खो चूका था. दूसरे बंदरो के मज़ाक उडाने के चलते वो बद्र काफ़ी परेशान हो गया. अब उसे हर बक्त दूसरे बंदर उसका मज़ाक बनाते ही नजर आते थे. यहां तक की अब वो पुरे दिन मैं चेन से एक पल के लिए भी नहीं बैठ सकता था.
कुछ समय बाद बन्दर ने एक दूसरे बंदर को अलग लेजाकर एक बात कही उस बंदर ने दूसरे बंदर से कहा की क्या तुम्हे पता है की मैंने अपनी पूछ क्यों कटवा दी. दूसरे बंदर ने आश्चर्य से पूछा क्यों. क्युकी पूर्णिमा के दिन चंद्रदेव उसे दर्शन देंगे. दूसरा बंदर उसकी बात पर आसानी से यकीन कर गया. और काफ़ी दर्द बर्दाश करने के बाद भी उसने अपनी पूछ काट दी. अब दूसरे बंदर इन दोनों बंदरो का मजाक उडाने लगे. लेकिन दूसरा बंदर चंद्र देव के दर्शन के लिए उसने सब कुछ बर्दाश कर लिया. कुछ समय के बाद वो दिन आ गया ज़ब पूर्णिमा की रात थी. अब बो बंदर काफ़ी ख़ुश था. क्युकी अब तक जिसके लिए उसने इतने सारे बंदरो से मजाक उड़वाया था. अब उसको उसका अच्छा फल मिलने वाला था. पूर्णिमा की रात आ गयो लेकिन उसे चंद्रदेव के दर्शन नहीं हुए. वो थोड़ा उदास हुआ लेकिन उसने उम्मीद नहीं खोई क्युकी अभी पूरी रात नाजी बीती थी. वो देर रात तक जागकर चंद्रदेव का ही इंतज़ार करता रहा. रात का अंत आ गया और अब सूरज भी हल्का हल्का दिखने लगा लेकिन चंद्रदेव ने दर्शन नहीं दिए. कुछ देर के बाद पुरे जंगल मैं सूरज की रौशनी फेल गयी. अब पूरी तरह से सुबह हो चुकी थी. अब बो बंदर पूरी तरह से चंद्र देव के दर्शन की उम्मीद खो चूका था. उसने दूसरे बंदर से पूछा की चंद्रदेव के दर्शन के बारे मैं पूछा. इस पर बंदर बोला की मुझे भी चंद्रदेव ने दर्शन नहीं दिए. इसके बाद वो दूसरे बंदरो की बुराई यह कहकर करने लगा की दूसरे बंदर बहुत ही ज्यादा निर्दयी है. उनको हमेसा मजाक उडाने से ही मतलब है. अब उसने दूसरे बंदर से भी कहा अब तुम्हे भी दूसरे बंदरो की पूछ कटवानी है. अब वो बंदर तो अपनी पूछ खो ही चूका था. जिससे दूसरे बंदर उसका मजाक उड़ाते थे. इसीलिए अब बो बंदर भी दूसरे बंदरो की पूछ इसी तरीके से कटवाने लगा. और एक दिन ऐसा आ गया ज़ब झुण्ड के ज्यादातर बंदरो ने अपनी पूछ खो दी. अब बिना पूछ के बंदर उन बंदरो का मजाक उड़ाते थे जिनकी पूछ थी. कुछ समय के बाद उस झुण्ड के सभी बंदरो ने अपनी पूछ खो दी.
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